हाल ही में यूनेस्को यानी United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization (UNESCO) ने 25 जुलाई 2021 को तेलंगाना के रामाप्पा मंदिर को विश्व विरासत घोषित किया है. विश्व विरासत समिति के 44वें सत्र के दौरान फुज़ोउ, चीन में इसकी घोषणा की गई. ‘विश्व विरासत’ यानी पृथ्वी के वह स्थान हैं, जिनका बेजोड़ सनातन मोल है और जिन्हे मानवजाति को अपनी अगामी पुश्तो के लिए बचाए रखना है.

काकटिया काल की गौरवगाथा की ये मिसाल साल 1234 ईस्वी में निर्मित है. मुलुगु जिले के पालमपेट में 800 साल पुराना ये पूरा मंदिर परिसर वास्तुशिल्प सहित कई लिहाज़ से अनुपम है. आइए जानते हैं, इस मंदिर की 7 अनूठी ख़ूबियाँ, जो इसे ख़ास बनाती हैं…

1) मंदिर जो इसे बनाने वाले कारीगर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर को काकटिया राजा गणपति देव के राज में बनवाया था. और इसे बनाने वाले कारीगर का नाम था रामाप्पा सतपथि. इसलिए इस पूरे परिसर को रामाप्पा मंदिर समूह कहते हैं. इस में प्रमुख शिवालय को रुद्रेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. रुद्रेश्वर इसलिए कि इसे सेनापति रेचेरला रुद्र की निगरानी में बनाया गया था. यानी राजा की बजाय कारीगर और सेनापति को क्रेडिट!

2) तैरने वाली ईंटो से बना ! मंदिर में इस्तेमाल की गई ईंटे बहुत ही कम वज़न की हैं. आर्कियोलॉजिस्ट (पुराविदों) का कहना है कि, इस मंदिर में आम पत्थर की बजाय ख़ास तकनीक से बलुआ पत्थर जैसी सामग्री से बनी ऐसी हल्की-फुल्की और स्पाँजी ईंटे इस्तेमाल हुई हैं कि वह पानी में तैर सकती हैं. ये उस काल में भारत की उन्नत टेक्नोलॉजी की मिसाल है.

3) सतर्क नंदी ! इस मंदिर का एक और आकर्षण है नंदी मंड़पम में बैठा नंदी. जो शिवलिंग की और मुँह करके बेहद सचेत अंदाज़ में बैठा है. जबकि अक्सर शिवालयो में ऐसी मुद्रा में नंदी नहीं होते हैं. इस चौकन्ने नंदी को आभुषणो से सजाकर इतनी बारीकी से बनाया है कि इसकी नसे भी दिखती हैं. एक और अदभुत बात ये है कि इस मंदिर में नौ फीट ऊंचा शिवलिंग है.

4) दीवारों पर रामायण और शिव पुराण की गाथाएँ ! मंदिर के गर्भ गृह और दीवारों पर इन महान ग्रंथो के अलावा कई अन्य ग्रंथो से प्रेरित दृश्य खुदे हुए हैं. यानी पत्थरो पे इन ग्रंथो की गाथाओं को सजीव किया गया है. मंदिर में नर्तकियों और पौराणिक पशुओ की मुर्तियाँ काफ़ी तादाद में हैं और आकर्षक व सजीव हैं.
Photo: Parag Sane Photo: V Gopalan
5) सुरीले और सुंदरियो वाले खम्भे! मंदिर की दीवारे और छत ही नहीं, बल्कि इसके खम्भो की सुंदर कारीगरी और उस पे बनी मुर्तियाँ भी सुंदर बनावट की मिसाल हैं. वहीं इन खम्भो पर प्रहार करने पर संगीतमय सुर निकलते हैं.
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6) 40 साल की मेहनत! तेलंगाना सरकार की वेबसाइट के अनुसार इस मंदिर परिसर को बनने में लगभग चालीस साल लगे थे.

7) भूकम्प में भी सलामत ! सत्रहवी शताब्दी में इस इलाके में तेज भूकम्प आया था. जिससे इसे नुकसान हुआ लेकिन अपनी ‘sandbox technique’ नींव में तकनीक के कारण इस मंदिर का मुख्य हिस्सा बच गया.
इस सूची में भारत की यह 39वी विरासत है. इस में शामिल होना सम्मान की बात है, जो ना सिर्फ तेलंगाना, बल्कि भारत के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि है.
- जितेंद्र जवाहर दवे
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अद्भुत जानकारी देने के लिए धन्यवाद दादा।
सुंदर और ज्ञान वर्धक जानकारी!