
सूर्यदेव की प्रचंड उर्जा में नौ दिवसीय चैत्र प्रतिबंध विसर्जन समारोह अत्यंत उत्साहपूर्वक मनाने के कारण भोला शंकर ने अंजाने में ही अतिसार को अपनी काया में प्रविष्ट करा लिया ।
अब भोला की स्थिति सरकारी एनीकट की तरह हो गई जिसमें कुछ भी रूक नहीं रहा था ।
अचानक आये इस संकट से मुक्ति पाने के उद्देश्य से वह आचार्य श्याम देव के अंजली चिकित्सालय पहुँचा ।
आचार्य ने उसकी समस्या सुनकर पहला प्रश्न किया – कोई दवा दारू ली ?
भोला बोला – हाँ
आचार्य बोले – कौन सी ?
भोला बोला – इंग्लिश और क्या ?
आचार्य बोले – स्वदेशी क्यों नहीं अपनाते ?
भोला बोला – देशी अपने को शूट ही नहीं करती
आचार्य बोले – तो यहाँ क्यों आये हो ?
भोला बोला – दवा लेने
आचार्य गुस्से से तमतमाये – जब शूट नहीं करती तो क्यों आये हो ।
भोला बोला – आचार जी , आप बात समझ नहीं रहे हैं । मुझे देशी दवा से दिक्कत नहीं है , दारू शूट नहीं करती ।
आचार्य इससे पहले आपे से बाहर होते उन्होंने बीस बार साँस अंदर बाहर कर खुद को आत्मनियंत्रित किया । हालांकि भोला अपनी निजी समस्या के कारण उनके साँस के अंदर बाहर होने वाले मार्ग को ठीक ठीक चिन्हित करने में असफल रहा ।
खैर आचार्य जी ने रक्तचाप पर नियंत्रण कर भोला को बड़ी बड़ी आँखों से घूरते हुए एलसीडी स्क्रीन के पास लगी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया ।
भोला आचार्य के इस साधारण इशारे को भी गूढ़ समझ टीवी की ओर देखा, जिसमें उस वक्त आलोक नाथ जी एक सज्जन को लिंक ताला देते हुए कह रहे थे कि यह बेजोड़ और विश्वसनीय है।
भोला बाजार से वही ताला लेकर आया है और कह रहा है – महाराज , इसे अच्छी तरह लिंक कर दें ताकि कमबख्त अतिसार नियंत्रित हो जाय ।
हमने कहा – अबे पप्पू भैय्या के ब्रेन क्लोन ये पेड लॉक है , पेट लॉक नहीं ।
- संजय महापात्र
रायपुर, छत्तीसगढ | लेखक संजय महापात्र अपने पात्र भोला और महाराज के ज़रिए अनूठे अंदाज़ में व्यंग-वार्ता बुनते हैं.